यूं ही बेसबब by Santosh Jha (most inspirational books of all time TXT) 📖
- Author: Santosh Jha
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बेहद आबजेक्टिविटी व ईमानदारी से देखा जाये तो सारा दोष हमारा भी नहीं है। बचपन से ही हमें 150 साल पुरानी शिक्षा पद्धति से पढ़ाया गया है। परिवार वालों और बुजुर्गों ने भी पुराने और अब तक करप्ट व आबसोलीट हो चुके विस्डम को हमारे माइंड मैं डालते रहे हैं। और हम खुद इतने असुरक्षित और डरे हुए लोग हैं कि नयी और नान-कन्फार्मिस्ट नालेज के प्रति एक क्लोस्ड डोर अप्रोच रखे हुए हैं।
जब तक हम यह नही मानेंगे कि इंसानों के कलेक्टिव नालेज बेस और विस्डम स्ट्रक्चर को नये साइंटिफिक और आब्जेक्टिव विस्डम के लाइट में अपग्रेड और रिस्ट्रक्चर करने की जरूरत है तब तक हम सब उन्ही आबसोलीट सवालों और आन्सर-क्राइसिस से जूझते रहेंगे। और चूंकि ऐसा करना अब इंसानी इंटेलेक्च्यूअलिजम का पापुलर बेंचमार्क बन चुका है, इसलिए ऐसा करने में हमें बहुत सुख और सुकून भी मिलता है। बदलना कोई आसान काम कभी भी नही होता...
ये दिखता भी है, हम सब लोग ह्यूमन सिविलाइजेशन के एक बेहद क्रिटिकल फेज से गुजर रहे हैं। आज से 200 सालों के बाद शायद कुछ और बेहतर तस्वीर होगी। हमारा आने वाला जेनरेशन हमसे ज्यादा कान्फ्लिक्ट्स और कन्फ्यूजन झेलेगा और तब थक-हार कर उसको नये विस्डम को एक्सेप्ट करना ही होगा। हमारा अभी का वर्तमान नया जेनरेशन अभी क्रासरोड्स पर है। पुरानी छूटती नहीं, नये पर ना भरोसा बन पा रहा है ना ही सही नालेज है। सभी रिएक्सनरी इन्ट्यूटिवनेस को, यानि प्रतिक्रियावादी अवचेतन को विस्डम मान कर खुद को अच्छा व सही और दूसरों को बुरा व गलत समझ कर खुश हो रहे हैं। यह एक तरह का ग्लोबल इंसानी प्राईड है जो लगभग हर संस्कृति में प्रबल प्रवाह है।
अगर हम सब जिद छोड़ें, विस्डम के बैलेन्स्ड व होलिस्टिक अप्रोच को समझें और स्वीकार करें कि लाइफ का गोलडेन रूल है इवाल्व होते व करते रहना, खुद को अपग्रेड करने के लिए पुरानी सोच को अनलर्न करना, तो राहें आसान होंगी। और ये तभी होता है जब इंसान ओपन हो, चेंजेस को एक्सेप्ट करे और खुद की इन्ट्यूटिव सब्जेकटिविटी की जिद से ऊपर उठ कर मूल सवालों को समझें। बाकी अपने आप आसान होता जाएगा...
बहुत पुरानी कहानी है, तीन अंधे एक हाथी को हाथ से टटोल कर आपस में लड़ रहे थे। एक ने पूंछ छुआ और कहा ये एक पूंछ है। दूसरे ने सूंढ़ और तीसरे ने कान छुआ। सब की ये जिद थी कि जो वह महसूस कर रहा है वही सही है, बाकी सब गलत हैं। और सत्य अलग-अलग था। कोई भी आंख वाला इंसान देख पाता कि वो सब एक ही सत्य, यानी हाथी के विभिन्न अंगों के डिफरेंट पर्सेपशन्स को लेकर आपस में अपने-अपने व्यक्तिगत सत्य को ही सही समझ कर लड़ रहे हैं। सत्य तो एक ही है, यथार्थ तो सिंगुलर है, हां यथार्थबोध की भिन्नता से विवाद व द्वंद्व है, जिससे टकराव है। यही सवालों की एकलता, सिंगुलैरिटी को मानने-समझने में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए तो एकल व सिंगुलर जवाब के प्रति एकमतता नहीं बन पाती। इसे ही तो मानना-समझना है, और क्या है...
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Accept My Gratitude
Writing something is a daunting task as there is always a lurking apprehension of it not being of utility for some readers. I however feel at ease, because of my faith in magnanimity of readers. I am happily sure; you shall forgive if my efforts could not be up to your expectations. Thank you so much for being with me and allowing me to share with you. Wish you an empowered life; with the prosperity of the consciousness.
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About The Author
People say, what conspire to make you what you finally become are always behind the veil of intangibility. Someone called it ‘Intangible-Affectors’. Inquisitiveness was the soil, I was born with and the seeds, these intangible-affectors planted in me made me somewhat analytical. My long stint in media, in different capacities as journalist, as brand professional and strategic planning, conspired too! However, I must say it with all innocence at my behest that the chief conspirators of my making have been the loads of beautiful and multi-dimensional people, who traversed along me, in my life journey so far. The mutuality and innocence of love and compassion always prevailed and magically worked as the catalyst in my learning and most importantly, unlearning from these people. Unconsciously, these amazing people also worked out to be the live theatres of my experiments with my life’s scripts. I, sharing with you as a writer, is essentially my very modest way to express my gratitude for all of them. In my stupidities is my innocence of love for all my beautifully worthy conspirators!
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Other Titles By Santosh Jha
Fiction:
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Non-Fiction:
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ImprintPublication Date: 08-28-2021
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