शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (love story books to read txt) 📖
- Author: अभिषेक दळवी
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कॉलेज के पहले दिन जो जो होता है वह सब अब चालू था। हर कोई खड़ा होकर अपनी अपनी पहचान बता रहा था। पहले रो की सब लड़कियों ने अपनी इंट्रो बताई थी। अब दूसरे रो की लड़कियों की बारी थी। मुझे इस टाइमपास में बिल्कुल भी इंट्रेस नही था इसलिए मैं यह सब इग्नोर कर रहा था। तब ही मेरे दिमाग की बत्ती जली। यह लड़कियां अपनी पहचान बता रही है, इसका मतलब मैं थोड़ी देर पहले जिस लड़की को देख रहा था उसका नाम मुझे पता चल सकता है। उसके पिछले बेंच पर बैठी लड़की अब इंट्रोडक्शन दे रही थी। तीन लड़कियों के बाद उसका नंबर था। मैं ध्यान से सुनने लगा। पिछले बेंच पर बैठे लड़के जोर जोरसे बाते कर रहे थे। पहला दिन था इसलिए मॅम भी उन्हें कुछ नही बोल रही थी। लेकिन उनके आवाजों के वजह से मुझे इंट्रो देती हुई लड़कियों की आवाज साफ सुनाई नही दे रही थी। किसी भी कीमत पर मुझे यह गोल्डन चांस गवाना नही था। मेरे पड़ोस में बैठी लड़की का नाम जानकर ही रहूँगा यह मैने तय कर लिया था। आँखे बंद करके पूरी ताकद कानों में इकट्ठा कर उसका नाम सुनने के लिए मैं तैयार हो गया। उसका नंबर आ गया।
" स्मिता जहाँगीरदार " नाम बताकर वह बैठ गई।
उसके वह शब्द , उसकी वह आवाज काफी देर तक मेरी कानों में गूँज रही थी। मैं आँखे बंद करके उसी में खो गया था। मेरे पड़ोस में बैठे लड़के ने मुझे हिलाया तब मैंने आँखे खोल दी। स्मिता के बाद बाकी की लड़कियां और मेरे आगे बैठे लड़कोने कब इंट्रो दे दी यह पता ही नही चला। मैं झट से खड़ा हो गया।
" अभिमान देशमुख ....नासिक " कहकर मैं बैठ गया ।
पर उस मॅमने मुझे फिर से खड़ा किया।
" अभिमान तुम नासिक से पूने क्यों आए ?" उन्होंने पूछा।
" मॅम, एक्चुअली वहां कोई अच्छा कॉलेज नही था।" मैन कहा।
" क्या ? नासिक में बी एस्सी का एक भी अच्छा कॉलेज नही ?" मॅमने पूछा।
" बी एस्सी नही। मेकॅनिकल "
" तुम इंजिनियरिंग के स्टूडेंट हो ?"
" हाँ "
" अरे फिर बी एस्सी के क्लास में क्या कर रहे हो ?"
" यह बी एस्सी का क्लास है ?" मैंने चौंककर पूछा।
मेरे इस सवाल पर पूरा क्लास जोर जोरसे हँसने लगा। जिन चार लड़कों की वजह से मैं लेडिज वॉशरूम में गया था। उनके ऊपर दोबारा भरोसा करके मैंने गलती की है यह बात अब मुझे समझ मे आ रही थी।सब मुझपर हँस रहे है यह देखकर मुझे बहुत एम्बॅरीस फील होने लगा। मैं झट से अपनी बॅग लेकर क्लासरूम से निकल कर ग्राउंडफ्लोर पर आ गया। जिन लड़कोने मेरा मजाक बनाया था वह अब कही दिखाई नही दे रहे थे। मेरी माँ हमेशा मुझसे कहती थी।
" अभि, तुम बहुत भोले हो।"
तब पापा झट से हँसते हुए बोलते थे।
" इस रवैयह को भोलापन नही बुद्धू कहते है।"
मैं कितना बुद्धू हूँ इसका एहसास मुझे अब हो रहा था।
... स्मिता ...
आज कॉलेज में एक किस्सा हुआ। एक लड़का हमारे क्लास में आया था। वैसे बीस पच्चीस मिनट देरी से ही आया था। मेरे ही पड़ोसवाली बेंचपर आकर बैठ गया । वह इंजीनियरिंग का स्टूडेंट था पर मॅम को इंट्रोडक्शन देने तक उस बेचारे को पता ही नही था कि वह बी एस्सी के क्लास में आकर बैठ गया है।
" दुनिया मे बेवक़ूफ़ लोगो की कोई कमी नही होती।" ऐसा मैं नही मेरे बगल में बैठे लड़की ने उसके बारे में कहा।
वह किस्सा याद करके हम लड़कियां दिन भर हँस रहे थे। कुसुम मुझसे कह रही थी।
" कितना क्यूट था ना वह लड़का । तुम्हे पता है स्मिता, वह काफी देर तक तुम्हे ही देख रहा था।"
उसकी बातें शायद सच थी। नोव्हेल पढ़ते वक्त जब मेरा ध्यान उसकी तरफ गया तब मैंने देखा वह मुझे ही देख रहा था ।
वह शायद मुझे देख रहा होगा पर कोई लड़का मुझे देखे इस बात की मुझे ना ही खुशी थी और ना ही गम। ऐसी बातों की मेरी जिंदगी में कोई कीमत नही थी क्योंकी मेरी शादी पहले से ही तय हो चुकी थी।
मैं स्मिता, स्मिता जहाँगीरदार। जहाँगीरदार परिवार की इकलौती बेटी। भैया के आठ साल बाद मेरा जन्म हुआ और जहाँगीदारों कि हवेली को बेटी मिल गई।
मेरे पिताजी को सिर्फ बेटे चाहिए थे बेटी नही। पर भगवानने मेरी माँ की ख्वाईश पूरी की और उसकी कोक से लड़कीने जन्म लिया।

हम जहाँगीरदार यानी खानदानी जमींदार। आझादी से पहले हमारी कई गांवों में जमीन थी। आज भी हम तीन सौ एकड़ जमीन के मालिक है। पिताजी विधायक है। घर मे पैसा , दौलत ,शोहरत सब कुछ है। मुझे कभी किसी भी बात की कमी नही थी। बचपन से मेरी परवरिश लाड़ प्यार से हुई थी। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी मेरा घर मुझे पिंजरा लगता था। हाँ .....' सोने का पिंजरा ' क्योंकी बचपन से मुझे किसी भी बात की आजादी नही थी। बचपन से मैं जो कुछ भी मांगती पिताजी झट से वह चीज मेरे सामने हाजिर करते। पर सिर्फ इस वजह से वह मुझसे प्यार करते थे ऐसा मैं बिल्कुल नही कहूंगी, क्योकि उनकी हर बात में मुझे एक तरह का गुरुर , एक तरह का घमंड दिखाई देता था कि वह अपने बच्चों की कोई भी मांग झट से पूरी कर सकते है। बाकी लड़कियों को जिसतरह पिता का प्यार मिलता है वैसे मुझे कभी नही मिला। पिताजी मुझे उनके साथ कभी घुमाने नही लेकर गए , मैं जब बीमार होती तब भी कभी गोद मे सिर रखकर मुझे सुलाया नहीं इतना ही नहीं कभी मेरे साथ प्यार से दो बातें तक नही की। उनके लिए मैं बेटी नही बल्कि एक जिम्मेदारी थी सिर्फ एक जिम्मेदारी। मेरी शादी के बाद वह इस जिम्मेदारी से छुटकारा पानेवाले थे । मेरी ट्वेल्थ की एग्जाम के दो महीने बाद भैया की शादी होनेवाली थी। भैया की शादी के वक्त बाकी औरतों के साथ साथ मेरे हाथों पर भी मेहंदी लगाई गई। तब ही पिताजीने सबके सामने अनाउंसमेंट कर दी कि इस मेहंदी का रंग उतरने से पहले मेरी सगाई होनेवाली है। मुझे और पढ़ाई करनी थी पर,
" पढ़ाई लड़कियों के किस काम की ? आगे चलकर उन्हें घर ही तो संभालना होता है।" ऐसी मेरे पिताजी की सोच थी।
मैं जब एलेव्हेन्थ में थी तब ही उन्होंने उनके दोस्त के बेटे के साथ मेरी शादी तय की थी। इसमे उनका निजी स्वार्थ भी था। उनके वह दोस्त मिनिस्टर भी थे। उनकी मद्द से पिताजी पॉलिटिक्स में तरक्की कर सकते थे। पर इस सब मे मैं उस लड़के के साथ मैं खुश रह पाउंगी भी या नही ? यह सवाल बिल्कुल भी उनके मन मे नही आया। जिससे मेरी शादी होनेवाली थी उसके घर मे मैं एक बार गई थी।
भैया के शादी में मैने उसे पहली बार देखा। वह लड़का मुझसे सात से आठ साल बड़ा था , मोटा शरीर , गले मे बड़ी बड़ी सोने की चैन , बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछ , आंखों में गुरुर ,चेहरे पर गुस्सा उसको सिर्फ देखकर ही मैं डर गई थी। दो चार चमचों के साथ जीप से गांव में भटकना , दारू के बार मे झगडे , मार पीट करना , लड़कियों को छेड़ना इतना ही नही उसपर तीन एक्स्ट्रोशन के केसेस भी थे। पर पिताजी को इस बात की कोई फिक्र नही थी। एक अमीर परिवार में मेरी विदाई करके वह मेरी जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहते थे।
भैया के शादी के वजह से घर के सारे लोग खुश थे सिवाय मेरे। मुझे अपना भविष्य दिखने लगा था। मेरी माँ बी एड पास थी। उसे बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता था। पर पिताजीने उसकी इतनी छोटीसी ख्वाईश
Reading books romantic stories you will plunge into the world of feelings and love. Most of the time the story ends happily. Very interesting and informative to read books historical romance novels to feel the atmosphere of that time.
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