शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (love story books to read txt) 📖
- Author: अभिषेक दळवी
Book online «शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (love story books to read txt) 📖». Author अभिषेक दळवी
जिस घर मे मैं शादी के बाद जानेवाली थी वहां के हालात भी बिल्कुल ऐसे ही थे। मुझे यह ऐसी जिंदगी बिल्कुल नही जिनी थी। मेरे जिन्दगी में कोई बड़े सपने नही थे। सिर्फ शादी के बाद सुख दुःख बाँटने वाले लोग ,प्यार करनेवाला पती, एक शांत सुखी परिवार मुझे चाहिए था। पैसा , गहने , गाड़ियों का शौक मुझे नही था पर माँ जैसे प्यार करनेवाली सांस , कभी कभी हँसी मजाक करनेवाले ससुर , विकेंड के दिन हाथों में हाथ पकड़कर घुमाने ले जानेवाला पतीइतनी छोटी सी ख्वाइशें थी। पर शायद यह सुख मेरी नसीब में नही था।
मेरी एक बुआ थी। दो साल पहले वह चल बसी। वह गाँव के किसी गरीब लड़के से प्यार करती थी पर दादाजी ने उसकी शादी जबरदस्ती किसी दूसरे आदमी से करवा दी। शादी के बाद दो साल तक वह बच्चे को जन्म नही दे पाई इसलिए उसका पतीहमेशा हमेशा के लिए यहां उसे छोड़कर चला गया। कुछ महीनों के बाद पता चला कि उसने दूसरी शादी की है। पर दूसरी पत्नी भी कभी प्रेग्नेंट नही हो सकी। शायद उसके पतीमें ही प्रॉब्लेम थी। पर इस सब की वजह से मेरी बुआ डिप्रेशन में चली गई। बाद में उसे पागलपण के दोहरे भी पड़ने लगे। कभी कभी वह जोरजोरसे चिल्लाती थी, कहती थी
" ओरतों की जिंदगी मतलब सिर्फ तकलीफ .... लड़कियों को भागकर शादी करनी चाहिए ....मैं अगर भागकर शादी करती तो आज बहुत खुश होती।"
उसे पागल समझकर सब उसे इग्नोर करते थे पर उसकी बातें कभी कभी मुझे याद आती थी। कभी कभी मुझे भी लगता था मुझसे प्यार करनेवाला कोई लड़का ढूंढ लू और उसके साथ इस सब से दूर निकल जाऊ। पर तभी माँ का चेहरा मेरे सामने आता था। अगर मैं इस तरह घर से भाग गई तो उसका क्या होगा यह सोचकर ही मुझे डर लगने लगता था।
पिताजी के कहने के मुताबिक भैया के शादी के बीस दिन बाद मेरी शादी का और उससे पहले सगाई का मुहूरत निकाला गया। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे वैसे वैसे मेरी निराशा बढ़ती जा रही थी। मेरी यह हालत माँ से देखी नही गई उसने सब कुछ मामा को बताया। माँ के बाद अगर किसी को मेरी फिक्र थी तो वह इंसान था मेरा मामा। मामा जब मुझे मिलने के लिए आया तब उसके सीने से लिपटकर मैं बहुत रोयी। उसने मुझसे वादा किया कि वह मेरे लिए पिताजी को मनाएगा।
मेरे मामा का कंस्ट्रक्शन और लैंड डीलिंग का बिजनेस था। इलेक्शन के वक्त वह पिताजी को फायनांशियल सपोर्ट करता था। इसलिए पिताजी उसकी बात मानेंगे ऐसी मैं उम्मीद कर सकती थी। वह जब पिताजी से मिलकर मेरे कमरे में आया तब तक रो रो कर मेरी आँखें लाल हो चुकी थी। उसकी तरफ देखकर मुझे लग रहा था की वह कोई अच्छी खबर सुनानेवाला है।
" सोनू, तुम्हारी शादी तुम्हारे पिताने तय किए लड़के से ही होगी इसमें मैं कुछ नही कर सकता।" मामाने कहा। वह सुनकर मैं फिर रोने लगी।
" सोनू, पहले सब कुछ सुन तो लो। एक अच्छी खबर भी है।"
" क्या ?"
" पहले आंसू पोंछ लो फिर बताऊंगा।"
" क्या बताना चाहते हो?" मैंने आंसू पोछते हुए पूछा।
" अच्छी खबर यह है कि, तुम्हारी शादी मैंने तीन साल पोस्टपौंड कर दी है। तुम्हारे पिताजी से तुम्हारी पढ़ाई के लिए तीन साल का वक्त मांग लिया है।"
उसकी बातें सुनकर मेरे होठोंपर अपने आप स्माइल आ गई। मेरे प्रॉब्लेम का परमनेन्ट नही पर टेम्पररी सॉल्यूशन मिल गया।
मेरे एडमिशन के लिए मामाने कॉलेज ढूंढना शुरू कर दिया। वैसे मेरे ही गाँव के आसपास कुछ कॉलेजेस थी पर उनका रैंक अच्छा नही था। गाँव के पास कॉलेज होने से हर एक कॉलेज में पिताजी के कार्यकर्ता मतलब चमचे थे। उनके मदद से पापा मुझपर नजर रख सकते थे। पहले लेक्चर के तीस मिनट पहले घर से निकलना और आखरी लेक्चर खत्म होने के बाद झट से घर लौटना यही मेरी कॉलेज लाईफ़ हो सकती थी। मैं अपनी कॉलेज लाइफ एंजॉय कर सकूँ इसलिए मामाने मेरे लिए घर से दूर एक कॉलेज ढूंढ लिया। जिस कॉलेज में मेरा एडमिशन किया वह रैंक के हिसाब से अच्छा और फेमस भी था। कॉलेज के पास ही मामाने एक बंगला मेरे लिए रेंट से लिया। मेरे साथ पढ़नेवाली मेरे पहचान की पांच लड़कियों का रहने का इंतजाम मेरे साथ कर दिया। इस वजह घर में मेरा अकेलापन दूर हो गया। हमारा खाना , घर की साफ सफाई के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया। मामाने मुझे साफ साफ कह दिया था।
" सोनू, तुम्हारे पास तीन साल है। जो कुछ भी मस्ती मजा करनी है वह अब ही कर लो। फ्यूचर में तुम्हे इस तरह फ्रीडम मिलेगा ऐसा मुझे नही लगता। तुम वह हर चीज करो जिससे तुम्हे खुशी मिलेगी यहां तुम्हे रोकनेवाला कोई नही है। सिर्फ एक बात का ध्यान रखना तुम्हारी शादी तय हो चुकी है इसलिए लड़को से दूरी बनाए रखना। वैसे तुम समझदार हो ही, अपना खयाल रखना।"
मामाने मुझे यह तीन साल देकर मुझपर बहुत बड़ा एहसान किया था। यहां आते ही सबसे पहले मैंने लायब्ररी जॉइंट कर ली। मुझे पहले से ही रीडिंग का शौक था। मैंने तय कर लिया था इस वक्त का मैं पूरा इस्तेमाल करूँगी। इन तीन सालों में मैं अपनी लाइफ पूरी तरह एन्जॉय करूँगी।
... अभिमान ...
आज का दिन बहुत ही खराब था। पहले उन लफंगे लड़कों की बातों में आकर मैंने अपना मजाक बना लिया , बाद में उन पर पर भरोसा करके बी एस्सी के क्लास में गया और फिर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। इतना सब कुछ होने के बाद जब सिक्स्थ फ्लोर पर मेरे क्लास के पास पहुँचा तब पहला लेक्चर चालू था। एक बैंगन सा पेटवाला , बालों का चंपू बनाया हुआ ,फॉर्मल पैंट के नीचे स्पोर्ट्स शूज पहना हुआ प्रोफेसर क्लास में लेक्चर ले रहा था। मैं लेट आया इसलिए उसने दो घंटे मुझे क्लास के बाहर खड़ा कर दिया।पहले ही दिन दो घंटे उसने इतना क्या पढ़ाया वह भगवान ही जाने , उसके बाद दो प्रोफेसर आए उन्होंने भी इसी तरह पढ़ाया। इसलिए लंचटाइम में मेस में जाने के लिए देर हो गई। भूख से पेट मे चूहे दौड़ रहे थे। जब मैं मेस में पहुँचा तब मेस बंद हो चुकी थी। लंच टाइम खत्म होने के आधे घंटे पहले ही उन्होंने मेस बंद कर दी थी। फिर बाहर के ही एक होटल में मिसल पाव खाकर फिर लेक्चर अटेंड करने क्लास में आ गया । आखिर के दो लेक्चर उसी बैंगन से पेटवाले प्रोफेसरने लिए। पहले ही दिन उसने बहुत बोर किया। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि पूरा सेमिस्टर का सिलेबस वह आज ही खत्म करनेवाला है।
कॉलेज से छूटकर जब होस्टल आया तब बहुत थक चुका था। रूम में आते ही बेडपर लेट गया। थकान की वजह से नींद कब आई पता ही नही चला । डिनर के वक्त रूममेट्स ने जगाया। उनके साथ मेस में आ गया तब खाना मिल तो गया पर उस खाने देखकर ही मेरी भूख मर गई। मेरे घर मे मम्मी की हाथ की बनाई हुई दाल मख्खन की तरह गाढ़ी रहती थी। पर अब मेरे सामने जो दाल थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था, कुकने दाल पकाते वक्त दाल में थोड़ा पानी डालने के बजाए पानी मे थोड़ीसी दाल डाली है , सब्जी को काफी देर तक देखने के बावजूद भी मुझे समझ मे नही आ रहा था की वह कौनसी सब्जी है ? उसमें हरी सब्जी थी , वटाना भी था ,चना भी था और कुछ होगा यह जानने के लिए मैंने देखा तो मुझे लहसुन भी मिल गई , ऐसी सब्जी के साथ चपाती खाने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी। तो दाल के साथ ही चपाती खाई जाए यह सोचकर चपाती को हाथ लगाया। तब वह चपाती मुझे बहुत सॉफ्ट महसूस हुई इतनी मुलायम चपाती तो मेरी माँ भी नही बना सकती थी। सूखे रेगिस्तान में प्यास की वजह से पागल हुए इंसान को कोई पानी से भरा तालाब देखने पर जैसी खुशी होती है वैसी खुशी मुझे अब हो रही थी। चपाती बनानेवाले को मन ही मन मे थैंक्स कहकर एक टुकड़ा मैंने जुबान पर रख दिया। पर तब मुझे उस चपाती के सॉफ्टनेस का राज समझ मे आ गया। दरसरल वह चपाती आधी पकी हुई थी। काफी मुश्किल से वह टुकड़ा मैंने निगल लिया। प्लेट के एक कोने में अचार दिख रहा था वह अचार टुकड़ा इतना छोटा था की उसे देखकर ऐसे लग रहा था खाना परोसते वक्त गलती से प्लेट में गिर गया हो। अब मेरा पेट भरेगा या फिर भूखा पेट सोना पड़ेगा यह प्लेट में रखा चावल ही तय करनेवाला था। मैंने भगवान का नाम लेकर चावल को हाथ लगाया मगर वहां भी मुझे निराशा ही मिली। चावल ज्यादा ही पककर उसका रायता बन चुका था। ऐसा खाना मैं जिंदगी में पहली बार देख रहा था। बुजुर्ग कहते है खाना खाते वक्त उल्टे सीधे कमेंट्स करके खाने का इंसल्ट नहीं करना चाहिए। पर इतने पैसे देकर मेरे सामने अब जो था वह सच में खाना था या कुछ और ? यह भी एक सवाल था। मैं घर मे खाना खाते वक्त कभी कभी नखरे करता था तब माँ कहती थी।
" जब घर से बाहर जाओगे ना तब घर के खाने की कीमत समझ मे आ जाएगी।" सच में वह कीमत आज मुझे समझ मे आ रही थी। मेसवाले जिसे दाल कह रहे थे उसे चावल में मिक्स करके मैंने पेट भर लिया। क्योंकी फिलहाल दूसरा कोई ऑप्शन भी तो नही था। बाहर कही प्रायव्हेट मेस लगाना जरूरी था ऐसा खाना हररोज खाना नामुमकिन था।
दिनभर के प्रॉब्लेम्स फेस करने के बाद मेस से आकर बेड पर लेट गया। मगर वहांपर भी मेरी किस्मत खराब थी। मैंने जैसे ही आँखे बंद करके सोने की कोशिश की इलेक्ट्रिसिटी चली गई। पर मेरा बेड खिड़की के पास था यह एक बात मेरे लिए अच्छी थी। खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी। होस्टल के पीछे मेरे रूम के खिड़की के सामने एक बंगला था उन्होंने शायद उनके गार्डन में फूलों के पौधे लगाए थे।वहां के फूलों की खुशबू खिड़की से आनेवाली हवा के साथ मेरे रूम में आ रही थी। वह ठंडी हवा और उस खुशबू से मेरे दिनभर की थकान अचानक गायब सी हो गई। कॉलेज से आने के बाद काफी देर तक सो चुका था इसलिए अब जल्दी नींद नही आनेवाली थी। मुझे अब वह सुबह का नजारा याद आने लगा जब मैं गलती से उस बी एस्सी के क्लास में गया था और मेरे पड़ोस में वह सलवार कमीज पहनी लड़की बैठी थी। वह बहुत खूबसूरत थी। उसका नाम मे भूल गया शायद श्रुति था ....नही नही यह तो उसकी बगलवाली लड़की का नाम था ...शायद स्नेहा नही ...हाँ याद आया स्मिता था। हा बिल्कुल स्मिता ही था ' स्मिता जहाँगीरदार ' जब उस क्लास में सब लोग मुझ पर हँस रहे थे। तब वह भी हँस रही थी पर उसके हँसने का मुझे बुरा नही लगा बल्कि उसके खिलखिलाकर हँसने की आवाज मैंने अपने कानों में संभालकर रखी थी। शांत जगह पर छनकनेवाली नाजुक चूड़ियों की तरह उसके हँसने की आवाज थी। किताब पढ़ते हुए उसके होंठो पर आई मुस्कुराहट मैं अभी तक भुला नही था। देर रात तक मैं उसी के बारे में सोचता रहा। उसको याद करते हुए मुझे कब नींद आई पता ही नही चला।
... स्मिता ...
मुझे बचपन से ही फूलों में दिलचस्पी थी। मैं जिस बंगले में रह रही थी उसके मालिक मतलब कुलकर्णी अंकल पड़ोस के बंगले में उनके पत्नी के साथ रहते थे। यह
Comments (0)