Read Thriller books for free


Thriller is a genre in literature. Thriller completely independent genre. Books of this genre are available now for your attention. We add new Thriller books to our e-library every day every day. Always interesting and instructive to read using our elibrary.
Only occasionally does a rather skillfully tailored product come off this “conveyor line” that really has any merit in order to stand out from the basically homogeneous literary mass. Our electronic library is full of thriller highlights.
“Thriller” is a modern term.
This genre is classified by causing a sudden outburst of emotion in the reader.
Thriller elements are present in many works of different genres. Thriller mix of fantasy and detective. Of course, reading thriller novels of high quality in terms of content and form of presentation is a very useful, informative and even, in some cases, instructive activity. However, the reader must understand in advance that sometimes a detailed description of many bloody fights, shootings and martial arts, the suffering of numerous victims, all kinds of confrontations can cause him a kind of rejection from further reading works of this genre of literature.


Genre Thriller online and without registration


Reading books RomanceReading books romantic stories you will plunge into the world of feelings and love. Most of the time the story ends happily. Very interesting and informative to read books historical romance novels to feel the atmosphere of that time.
In this genre the characters can be both real historical figures and the author's imagination. Thanks to such historical romantic novels, you can see another era through the eyes of eyewitnesses.
Critics will say that romance is too predictable. That if you know how it ends, there’s no point in reading it. Sorry, but no. It’s okay to choose between genres to get what you need from your books. But in romance the happy ending is a feature.It’s so romantic to describe the scene when you have found your True Love like in “fairytale love story.”



Reading thrillers facilitates to the formation of a person's sense of danger and makes him avoid such situations in every possible way in real life. At the same time, the reader can use the example of books to form his own line of behavior in real situations. Thrillers contribute to the development of the sixth sense - intuition. The reader will definitely remember the heroes of thrillers, because they operate in extreme circumstances and must include all means for survival. Filmmakers are always on the lookout for new releases in thriller. Scripts are created every day, that are even more sophisticated and dynamic. Based on these scenarios, new films will be screened, that attract tens of thousands of fans thriller genre. Therefore, each reader will be interested in how it was possible to embody the complexity of the plot on the screen, which is described in the original book. The great success of thrillers on the screen, the basis will still be a book.



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Read books online » Thriller » तलाश by अभिषेक दलवी (mobi ebook reader .txt) 📖

Book online «तलाश by अभिषेक दलवी (mobi ebook reader .txt) 📖». Author अभिषेक दलवी



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दीवार पर लगी घड़ी मे देखा एक बज बजकर पाँच मिनट हो चुके थे। मतलब मामा तीन घंटे घर से बाहर थे। वो सोचने लगा की मामा कहाँ गए होंगे वो कहाँ जाते है ?

,क्या करते है ? इस बात की घर का कोई भी सदस्य उदय को भनक तक लगने नही दे रहा था। वो फोटो एक ही सबूत था जिसके बलबूते पर वो इन लोगो से कुछ पूछ सकता था पर वो भी गायब कर दिया। अब एक ही आदमी बचा था जो उसे मामा के बारे मे बता सकता था ।वो था मंदिर मे मिला पंडित। उदयने सुबह ही उससे मिलने का फैसला किया और बिस्तर पर आकर सो गया।

   सुबह थोडी देरी से उदय की आँखे खुली घड़ी मे नौ बज चुके थे। रात को देर तक जागने की वजह से हुआ होगा। उसने अपने मन मे ही दोहराया और उठ गया। एक अंगडाई देकर वो नीचे आ गया। मामा सोफे पर बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। वो भी शायद थोडी देर पहले ही उठे होंगे। वो झट से नहा धोकर ब्रेकफास्ट के लिए मेज पर आ गया। उसे मंदिर जाने की जल्दी थी। उसका ब्रेकफास्ट तयार था। आज भी सब उसके पसंद की चीज़े ही बनी थी। उसने बिना कुछ कहे ही खा लिया। वो उठकर हाथ धोने गया तब तक मामा भी मेज पर आकर बैठ गए। उदय  घर से बाहर निकलने के लिए तैयार हुआ।

" इतनी सुबह सुबह किधर जा रहे हो उदय " मामाने ब्रेकफास्ट करते हुए पूछा।

" वो मंदिर जा रहा था आप फिक्र मत कीजिए जल्दी वापस आऊँगा " कहकर वो जल्दी जल्दी बाहर आया।

उदय घर के पीछे खड़ी बाईक के पास आ गया। उसने देखा बाईक का एक भी टायर पंचर नही था। गौर से देखने पर उसे पता चला बाईक के दोनों टायर बदले नही थे वही थे क्योकि वो मिट्टी से खराब हुए थे । रात के समय जयेशने उसे कहाँ था की टायर पंचर है सुबह तक बदल दूँगा।

" मतलब जयेशने भी झुठ ही कहाँ " उदयने अपने आप से कहाँ।

वो बाईक पर बैठकर मंदिर की तरफ चल पड़ा। थोडी देर मे मंदिर तक पहुँच भी गया। घड़ी मे देखा तो ग्यारह बज चुके थे। सुबह का वक्त था इसलिए मंदिर की सीढ़ियों पर आने जानेवाले लोग दिख रहे थे। वो भी ऊपर की तरफ आ गया। चारों तरफ उसने नजर दौड़ाई। आज वो पंडित नही दिख रहा था। वो मंदिर के आसपास घुमा पीछे की तरफ भी गया लेकिन वहाँ भी पंडित का कोई अतापता नही था। वो मंदिर मे आया। भगवान के दर्शन करके वो पुजारी के पास आ गया।

" बाबा एक बात पूछनी थी " उदयने पुजारी से कहाँ।

" कहो ना बेटे क्या बात है ? " 

" जी वो पंडितजी से मिलना चाहता था। "

" कौन पंडितजी ?? " पुजारी ने पूछा।

" जी वो कल दोपहर के समय यहाँ थे ना वो " 

" कौन हो तुम ? कहाँ रहते हो ? " पुजारी ने शक की अंदाज मे सवाल किया।

" जी मेरा नाम उदय शर्मा मै पालीवालजी के घर मे रहता हूँ " 

 उदय इस जवाब पर पुजारी सोच मे पड़ गया।

" बताईये ना वो पंडितजी कहाँ है ? " 

" कौन पंडितजी " पुजारीने पूछा।

" वही जो कल दोपहर के समय इस मंदिर मे मौजूद थे " उदयने अपना सवाल दोहराया।

" बेटा कितने लोग यहाँ हमेशा आते है हर किसी को याद रखना बहुत मुश्किल बात है....मूझे देर हो रही है मै चलता हूँ " कहकर वो पुजारी जल्दी जल्दी मंदिर के अंदर चले गए ।

उदय समझ गया की ये पुजारी उसे

 टाल रहे है।

उदय जादा बहस ना करते नीचे आ गया। एक वो पंडित ही था जो मामा के बारे मे कुछ बता सकता था। वो भी मिल नही रहा था। इन पुजारी के अलावा कल और किसी ने उसे देखा नही था। अब ये पुजारी भी कुछ बता नही रहे थे।

उदय निराश होकर घर की तरफ निकल पड़ा। घर आने तक दोपहर हो चुकी थी। वो अंदर आ गया घर मे सिर्फ जयेश था। किचन से बर्तनों की आवाज आ रही थी। औरतें किचन मे होगी। घर के बाकी लोग कही नजर नही आ रहे थे।

 " मामा और चाचा किधर है ....? जयेश " उदयने पूछा।

" पता नही थोडी देर पहले ही कही बाहर गए है " 

" फिर कही गए कहाँ गए है ये बात तो ये लोग मूझे बताएँगे नही " उदयने मन मे ही कहाँ।

" जयेश तुम्हारे पास कोई किताब वैगेराह है। मै बहुत बोर हो रहा हूँ " उदयने पूछा।

" है ना.." कहकर वो जल्दी से अंदर चला गया और कुछ किताबें लेकर आया " 

" खाना लगने मे टाइम है क्या ?? मै खाना खाकर ही ऊपर चला जाता " उदयने पूछा।

" खाना तो तैयार है आप चाहे तो परोस ने के लिए कह दूँ " 

उदयने हा कहाँ। खाना खाकर वो अपने कमरे मे आ गया। असल मे उसे किताब पढ़ने का कोई शौक नही था लेकिन कल से एक ही बात पर सोच सोच कर वो परेशान हो गया था। जरा दिल बहलाने के लिए वो किताब लेकर बैठ गया।

      धूप बड़ी तेज थी। मामा गाडी मे ही बैठे थे। वो कल दोपहर जिस गाँव मे आए थे आज भी उसी गाँव मे आए थे। रविंद्रनाथ और प्रदीप गाँव के घरों मे पूछताछ कर रहे थे। मामा नजर सामने गई एक घर के पीछे तीन लोग रविंद्रनाथ और प्रदीप की तरफ देखते बात कर रहे थे। शायद उन्ही के बारे मे बाते कर रहे होंगे। कुछ वक्त बाद वो लोग उन दोनो की तरफ बढ़ने लगे। प्रदीप और रविंद्रनाथ के पास आकर उन लोगो ने कुछ पूछा। कुछ वक्त उन लोगों से बात करने के बाद प्रदीप और रविंद्रनाथ गाडी मे आकर बैठ गए ।

" कौन थे वो लोग ?? " मामाने पूछा।

" वो लोग विक्रम को जानते है। गैरकानूनी धंदो के लिए विक्रम ' बिचवा ' नाम से जाना जाता है " रविंद्रनाथने कहाँ।

" वो विक्रमचाचा को हमारे बूलावे के बारे मे बता देंगे ।" प्रदीपने कहाँ।

" ठीक है। जल्द से जल्द उससे मुलाकात हो जानी चाहिए बस " कहकर मामाने गाडी स्टार्ट की घर आने के लिए निकल पड़े।

उदय अभी अभी जाग गया था किताब पढ़ते पढ़ते कब उसे नींद आई उसे पता ही नही चला। उसने खिडकी से बाहर देखा। सूरज डूबने की कगार पर था ।लोग काम से घर लौट रहे थे। नीचे आँगन मे देखा गाडी खड़ी थी इसका मतलब मामा आ चुके थे। मामा इतनी देर किधर जाते होंगे ये सवाल ऊसके मन मे था। उसको लगा शायद मामा कल की तरह आज भी रात को कही जाएँगे। अगर आज जाएँगे तो उनका पीछा करने का उसने फैसला किया। वो जल्द से नीचे आया बाईक आँगन से बाहर ले जाकर घर के पीछे थोडी दूरी पर खड़ी कर दी। ताकि जब वो रात को उनके पीछे निकले तब घर मे किसी को संदेह ना हो। अब बस उसे रात के खाने का इंतजार था। उसको लग रहा था की खाना खाने के बाद मामा कल जैसे ही आज भी कही जाएँगे।

थोडी देर मे खाना खाने के लिए जयेश उसे बुलाने ऊपर आया। उसके साथ उदय नीचे आया उसे जादा भूक नही थी। फिर भी थोडा बहुत खाना खाकर वो ऊपर आ गया। ऊपर आकर बाहर निकलने के लिए तैयार हो गया। बीच बीच मे नीचली मंजिल की आहट लेने लगा। उसका शक सही निकला कुछ ही देर मे मामा तैयार होकर गाडी मे जाकर बैठ गए। उनके पीछे रविंद्रनाथ और प्रदीप भी बाहर आकर गाडी मे बैठ गए।

उदयने बेड पर तक्के रखकर उस पर चादर डाल दी ताकि कोई बेड की तरफ देखे तो उसे लगे कोई सो रहा है। जल्दी से अपने कमरे के बाहर आ गया। अपने पीछे कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और छिपके से घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया।

मामा की जाती हुई गाडी की आवाज सुनाई दे रही थी वो झट से अपनी बाईक स्टार्ट करके उनके पीछे चल पड़ा। मामा की गाडी और उसमे काफी अंतर था। उदय इस बात का ध्यान रख रहा था की मामा की नजर उसपर ना पड़े। वो काफी अंतर से सिर्फ आवाजो से उनका पीछा करता रहा। करीब एक घंटे के बाद उनकी गाडी ने एक गाँव मे प्रवेश किया।  मामाने एक कंपाऊंड वॉल के पास अपनी गाडी रुकवाई उनसे थोडी दूरी पर उदयने अपनी बाईक रुकवाई और एक बड़े पेड़ के पीछे छिपकर सब देखने लगा। मामा और रविंद्रनाथ  एक बड़े गेट के पास जाकर खड़े हो गए। दो मिनट मे अंदर से दो लोग बाहर आए। कपड़ों से तो वो चौकीदार लग रहे थे। रविंद्रनाथ कुछ देर तक उनसे बात करते रहे बाद मे मामाने अपनी जेब से नोटों की एक गड्ढी निकाल कर उनके हाथों मे थमा दी। उदयने ये देख लिया। थोडी देर बाद बात करके मामा और रविंद्रनाथ गाडी की तरफ लौट पड़े। वो देखकर उदयने भी अपनी बाईक स्टार्ट करके घर की तरफ बढ़ा दी। मामा के पहले उसे घर पहुँचना था। वो जिस रास्ते से आया था वो रात के समय मे भी उसने अच्छी तरह याद किया था। काफी समय बाद घर के कुछ दूरी पर आ गया कोई आवाज ना सुन पाए इसलिए बाईक बंद कर दी। उसे हाथों से ढकेलतें हुए घर के पीछे लाकर खड़ी कर दी। उसे संदेह था की घर मे कोई ना कोई मामा का इंतजार करते हुए जरूर जाग रहा होगा। बाईक रुकवा कर घर की पिछले हिस्से की  कॅम्पाउंड वॉल का गेट खोलकर अंदर  आ गया। घर के पिछले दरवाजे की तरफ वो बढ़ा। दरवाजा खोलने की उसने कोशिश की तब पता चला दरवाजा अंदर से बंद था।

वो जादा परेशान नही हुआ। उसने घर से निकलने से पहले इस बात का इंतज़ाम कर लिया था। अपने जेब से चाकू निकाल कर दो दरवाज़ों के बीच जगह मे फँसा लिया और हल्के से ऊपर खींच लिया। कुंडी खुल गई अंदर आकर उसने अपने पीछे दरवाजा बंद कर लिया। घर मे कोई नही दिख रहा था। छुपके से वो ऊपर अपने कमरे मे आ गया। कपड़े बदल कर बिस्तर पर आकर लेट गया। खिडकी से नीचे नजर दौड़ाई उसका शक सही था। आँगन मे वीरेंद्रनाथ पालीवाल कुर्सी पर अब भी बैठे थे। वो मामा का इंतजार कर रहे होंगे। दो मिनीट मे मामा की भी गाडी आ गई।

उदय बिस्तर पर लेट गया। जिस गेट के सामने मामाने गाडी रुकावई थी। उधर के चौकीदार को मामाने इतने पैसे क्यो दिए। आखिर क्या था उस गेट के पीछे जो मामा को उस चौकीदार को इतने पैसे देने पड़े। कल सुबह ही उधर जाकर पूरी तैकीकात करने का फैसला करके वो नींद मे समा गया।

 सुबह जरा देरी से ही उदय की आँखे खुली। घड़ी मे देखा तो नौ बज चुके थे।

" अरे यार इतना लेट हुआ " अपने आप से कहते ही वो जल्दी से उठा। ब्रेकफास्ट के लिए किसिने दरवाजा क्यो नही खटखटाया । सोचते सोचते ही वो नीचे आ गया। जयेश ऊपर की तरफ आ ही रहा था।

" अरे आप उठ गए आपको ही जगाने आ रहा था थोडी देर पहले मैने दरवाजा खटखटाया लेकिन आपने नही खोला " जयेशने कहाँ।

" हा थोडी गहरी नींद मे था। आज जरा देर ही हुई जागने मे " कहकर वो घर के पीछे की तरफ नहाने चला गया।

नहाकर आते ही ज़रूरत से जादा ब्रेकफास्ट करके अपने कमरे मे आ गया। क्योंकि दोपहर के खाने का कोई भरोसा नही था। जल्दी से तैयार होकर नीचे आ गया। मामा अखबार पढ़ते हुए सोफे पर ही बैठे थ आज वो भी देरी से ही उठे थे।

" मामा मै जरा घूमने जा रहा हूँ आने मे देर होगी। दोपहर का खाना बाहर ही खा लंूगा " कहकर उदय बाहर जाने लगा।

" रूको उदय कहाँ जा रहे हो " मामाने उसे रोकते हुए कहाँ।

" यही गाँव घूमने घर मे बैठे बैठे बोर हो रहा हूँ " 

" रूको जयेश को लेकर जाओ साथ मे " कहकर मामा जयेश को बुलाने के लिए मुड़े।

" अरे नही मामा उसे क्यों तकलीफ दे रहे है मै अपना ख्याल रख सकता हूँ " उदयने मुस्कुराते हुए कहाँ।

" ठीक है जादा देर मत करना " मामाने कह दिया।

उदय जल्द से घर के पीछे की तरफ आ गया जहाँ उसने बाईक घड़ी की थी। घड़ी मे देखा तब साढ़ेदस बज चुके थे। वो बाईक पर बैठ कर उसी रास्ते से चल पड़ा जहाँ से कल उसने मामा का

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