तलाश by अभिषेक दलवी (mobi ebook reader .txt) 📖
- Author: अभिषेक दलवी
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उदय उसी रास्ते से गाडी दौडा़ते हुए उस कम्पाऊंड वॉल के पास पहुँचा। वो पुराने ज़माने की पत्थरोंसे बनी बीस फीट ऊँची कम्पऊंड वॉल थी। उसने गेट से थोडी दूर अपनी बाईक खड़ी कर दी। लोहे से बना नक्षीदार जालीयों का गेट तीस फीट ऊँचा होगा ।गेट के बाद बड़ा सा आँगन उसके बाद एक आलीशान हवेली दिखाई दे रही थी। उसके बनाने के अंदाज से तीन चार सौ साल पुरानी होगी। आसपास कोई नही है देखकर उसने गेट थोडा खोलकर उसने अंदर झाँका। हवेली के दाई तरफ बगीचे के लिए बहुत बड़ी जगह थी। बगीचा अब पूरी तरह से सुख चुका था। एक ज़माने उस बगीचे मे उगे फूलों के पौधे हवेली की शोभा बढा़ते होंगे। उन पौधों पर लगनेवाले फूलो की खुशबू से हवेली महक उठती होगी। पर अब उधर सुखी झाडीयों की सिवा कुछ नही दिख रहा था। बायीं तरफ एक जगह बनाई गई थी जहाँ हाथी और घोड़े बाँधे जाते थे। हवेली के सामने आँगन की बीच मे एक गोल तालाब के लिए जगह बनी हुई थी जहाँ उस वक्त तालाब बना हुआ होता होगा। अब उसकी सुखी सतह पर छरों के सिवा कुछ नही दिख रहा था। हवेली चार मंजिली थी। जो की एक मुरदे की तरह बेजान नजर आ रही थी। बच्चों की किलकारीयां औरतों की हँसने खिलखिलाने की आवाज से गूँजती हुई ये जगह पूरी तरह से सन्नाटे से भरी थी।
उदय को लग रहा था की वो इस जगह को अच्छी तरह से जानता हो। यहाँ पहले भी कभी यहाँ आया हो , यहाँ रहा हो , इधर जिया हो। ये सारे नजारे दिल के एक कोने मे खो गए थे वो अब एक एक करके उसके सामने आ रहे थे। वो सोचने लगा उसने ये सब उसे कैसे याद आ रहा है ये सब कब देखा कैसे देखा है ? जबकी वो पहले कभी यहाँ आया तक नही था।
" क्यो कीकान है हवेली ??
पहेला कधी नही देखी अत्री बाढ़ीया हवेली ?? " उदयने किसी की आवाज सुनी उसने आसपास देखा। थोडी दूर रास्ते पर एक बुजुर्ग और उनके साथ एक जवान लड़का दिखा जो उदय की तरफ देखते हुए उससे कुछ कह रहे थे। वो उसी भाषा मे बोल रहे थे जिस भाषा मे विश्वनाथ पालीवाल मामा से बात कर रहे थे। शायद राजस्थानी भाषा होगी जो उदय को समझ नही आ रही थी।
वो उनके पास जाने लगा।
" मै समझा नही बाबा आप क्या कह रहे हो " उनके पास आकर उदयने कहाँ।
" यहाँ के नही लगते बेटा " उस इंसानने उदय को निहारते हुए कहाँ।
" जी नही मै मुंबई से आया हूँ "
" मुंबई से ....अच्छा है अच्छा है "
" ये इतनी बड़ी हवेली है किसकी है और ऐसी खाली क्यो पड़ी है " उदयने हवेली की तरफ इशारा करते पूछा।
उदय के सवाल पर वो बुजुर्ग कुछ पल हवेली की तरफ देखते रहे कुछ वक्त बाद कहने लगे।
" ये हवेली ये तो हमारे देवता रुद्रप्रतापसिंह चौहान ने सतरावी शताब्दी मे बनवाई थी। गाँववालो की बुरी किस्मत हो या फिर नियती का घिनौना खेल जो कभी दीयों से सजने वाली ये हवेली आज विधवा की माँग की तरह सुनी पड़ी है।
" रुद्रप्रतापसिंह चौहान यहाँ के राजा थे ?? "
" राजा नही जमीनदार लेकिन उनकी कीमत किसी राजा से कम नही थी यहाँ के लोगों का अपने बच्चों की तरह ख्याल रखते थे यहाँ के आसपास के गाँव उन्ही ने तो बसाए थे।
ये गाँव और आगे के छह गाँवों मे उनकी जमीनदारी चलती थी। उनके वंशजों ने भी उन्ही की तरह यहाँ के लोगों का ख्याल रखा " वो आदमी बहुत खुशी से बता रहा था।
" अब ये हवेली इतनी वीरान क्यों बनी है "
" बेटा जहाँ उजाला है वहाँ अंधेरा भी है जहाँ राम है वहाँ रावण भी है। उसी तरह चौहान खानदान के दुश्मन थे ठाकुर।
ये सात गाँवों छोड़कर आगे के चार गाँवों पर उनकी जमीनदारी चलती थी वो यहाँ के पूरे इलाके पर अपना कब्जा चाहते थे यहाँ के लोगों को अपने पैरों के तले कुचल कर रखने की हमेशा से ही उनकी मंशा थी।
लेकिन उनके इस खतरनाक इरादों के बीच मे खड़े थे चौहान जिन्होने गाँववालो के सिर उठाकर जिना सिखाया अपने पैरों पर खड़ा किया।
ठाकुरों ने कई बार चौहानो पर हमले किए लेकिन हर वक्त उन्हे हार कर वापिस लौटना पड़ा। उनकी तलवार कभी चौहानों के सामने नही टिक पायी " कहकर वो बुजुर्ग आदमी रुक गया शायद आगे बात बताते वक्त उसे बहुत दुख हो रहा था।
" फिर क्या हुआ बाबा ?? " उदयने पूछा।
" पच्चीस साल पहले रात के समय ठाकुर ने धोके से हवेली पर हमला किया जो था उसमे चौहानों का पूरा वंश खत्म हो गया " कहते वक्त उसकी आवाज दुख से बहुत काँप रही थी , आँखों मे दर्द था।
" चौहानों के घर मे कोई नही बचा ??" उदयने मायूसी से पूछा।
" बेटा अगर चौहानों के सपूत आज जिंदा होते तो हमे ऐसे दिन नही देखने पड़ते "
" मतलब " उदयने पूछा।
" बेटे आज जिन लड़कों को कॉलेज जाना चाहिये वो उसके लिए काम करते है।
यहाँ के हर कॉलेज मे उसके गुंडे फैले हुए है जो लड़कों को उसके गैर कानूनी काम करने के लिए उकसाते है। कोई गरीब जवान लड़की उसके आदमियों के नज़रों मे आ जाए तो वो अगवा की जाती है और सरहद्द के उस पार बेची जाती है।
चौहानो ने आझादी के बाद अपनी सात गाँवों के सारी जमीन यहाँ के लोगों को दान की थी। उनमें से दो गाँवों की जमीन जोर जबरदस्ती से अब तक ठाकुर हडप चुका है और अब इन गाँवों पर उसकी नजर है l
इतना ही नही गाँवों को मिलने वाले पानी भी अपने फॅक्टरी की तरफ मोड़ चुका है जिससे यहाँ के खेतों मे भी पानी की कमी है " उस बुजुर्ग आदमी के साथ मौजूद लड़के ने बताया।
" तो फिर आप लोग पुलिस के पास क्यो नही जाते " उदयने थोडे गुस्से से पूछा।
" कुछ फायदा नही। पुलिस , मंत्री , सरकार सब उसकी जेब मे है। पता नही इन ठाकुरों से कब हमे छुटकारा मिलेगा " कहकर वो बड़ी उदासी के साथ उधर से जाने लगे।
उदयने एक बार फिर उस हवेली की तरफ नजर दौड़ाई पता नही उस हवेली को इस तरह देख कर उसे इतना दुख क्यों रहा था। सूरज सिर पर आ चुका था। भूक भी बहुत लग रही थी। एक बार उस हवेली की तरफ देखकर वो निकल पड़ा।
गाँव मे ही एक ढाबा दिखा घर जाने तक आराम से एक घंटा लग जाता खाली पेट जाने से कुछ खाकर निकलना उसने सही समझा।
खाना खाकर ढाबे से निकलते निकलते डेढ़ बज गए। करीब पौने एक घंटे के लगातार सफर के बाद वो गाँव पहुँच गया। बाईक मंदिर के तरफ से गुजरी उसका रास्ते के एक तरफ ध्यान गया। एक आदमी जाता हुआ दिख रहा था। ये वही आदमी था जो उस दिन पंडितजी से बात कर रहा था। उदयने उसके बाईक रोक दी।
" पहचाना चाचा ?? " उदयने झूठी हँसी चेहरे पर लाते हुआ पूछा।
" न ...नही तो " उस आदमीने चौंकते हुए कहाँ।
" अरे परसों ही तो मिले थे हम मंदिर मे.... आप पंडितजी से बाते कर रहे थे तब याद है "
" अच्छा अच्छा " उस आदमी ने याद करते हुए कहाँ।
" तो सब ठीक ?? " उदयने पूछा।
" हाँ हाँ "
" और पंडितजी कैसे है "
" वो भी अच्छे ही होंगे ना " उस आदमी ने अपने अंदाज मे कहाँ।
" नही....मैने सुना है आजकल बीमार रहते है वो ?? "
" बीमार ?? "
" हाँ मतलब दिमागी बीमारी "
" क्या ??... " उदय का सवाल सुनकर बुरी तरह बौखला गया ।
" ये क्या कह रहे हो ऐसा कुछ भी नही है। उल्टा यहाँ का कोई भी भगवान का काम उनके बिना होता ही नही...कुछ भी कहते हो क्या " उस आदमी ने थोडा गुस्से मे कहाँ।
" शायद मेरी कुछ गलत फहमी हुई है आप मूझे उनका घर का पता दे सकते है उनसे मिलना था " उदयने माफी माँगते कहाँ।
" ये तुम्हारी गाडी है ??
हमे बिठाओगे तो बता देंगे " कहकर वो बाईक पर बैठने आया।
उदय उसको लेकर पंडितजी के घर की तरफ चल पड़ा। कुछ देर बाद एक छोटे से घर के सामने उसने बाईक रोकी। उस घर की तरफ इशारा करके वो आदमी उतर गया और अपने रास्ते चला गया। बाईक उधर ही रोककर उदय उस घर के आँगन मे आ गया। " आज कुछ भी करके पंडित जी को मामा के बारे मे जो कुछ मालूम है वो पता करके ही रहुँगा ।" अपने आप से कहकर उसने घर मे प्रवेश किया। घर मे दीवारों पर भगवान की कई तस्वीरें लगी हुई थी। घर का थोडे बहुत पुराना सामान पंडितजी की गरीबी को साफ दर्शाता था ।
उदय को देखकर एक चौदह पंद्रह साल का लड़का उसके पास आया।
" कौन चाहिये चाचा ?? " उस लड़के ने पूछा।
" पापा है घर पे ?? "
" आप बैठिये उनको बुलाकर लाता हूँ " वो चारपाई की तरफ इशारा करके घर के पिछले दरवाजे से बाहर गया। " उदय चारपाई पर आकर बैठ गया। पिछले दरवाजे से उस लड़के के साथ पंडित जी आ गए।
" जी कहिए " कहते हुए वो उसके सामने बैठ गए।
" जी......मुझे फिजूल की बातोंमे वक्त जाया करना अच्छा नही लगता सीधे काम की बात करता हूँ।
पालीवालों के घर पर जो भद्रसेन नाम का इंसान है उसके बारे मे आप क्या जानते हो " उदयने पूछा।
उदय के इस सवाल को सुनते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
" क्या... तुम.....मतलब....मै.....तुम हो कौन ?? " वो इतनी बुरी तरह से बौखला गए की उनके मुँह से सवाल भी ठीक से नही निकल रहा था।
" मै उदय शर्मा पालीवालों के घर पर ही रहता हूँ "
" उनके के घर के किसी भद्रसेन नाम के आदमी को मै नही जानता "
" आप जानते नही ?? भूल गए हर साल तो उनका आप श्राद्ध करवाते है " उदयने तीखे आवाज मे कहाँ।
" क्या....तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है लगता है "
" तो आप किसी भद्रसेन नाम के आदमी को नही जानते ?? "
" बिल्कुल नही " पंडितजीे नजरे झुकाकर कह रहे थे।
" ठीक है तो इन भगवान की तस्वीरों पर हाथ रख कर कसम खाइए " उदयने थोडी ऊँची आवाज मे कहाँ।
" कसम.....ये क्या जबरदस्ती है ? मेरे ही घर मे आकर मुझ पर ही रोब दिखा रहे हो " अब पंडितजी भी थोडा गुस्सा हो गए। उनकी आवाज सुनकर उनका बेटा और पत्नीभी उधर आ गए।
" आप मूझसे कुछ छुपा क्यों रहे है "
" मै कुछ छुपा नही रहा " बोलकर पंडितजी गुस्से से खड़े हुए।
" तो फिर ठीक है जिंदगी भर अपने जिस भगवान की पूजा की उसकी और आपके बेटे की आपको कसम है। सबकुछ सच सच बताईये " उदयने भी कह दिया। वो भी इतनी जल्दी हार नही माननेवाला था।
उसके कहने पर घर मे मातम का माहौल बन गया। पंडितजी धीरे धीरे चलते हुए खिडकी की तरफ चले गए। कुछ देर खिडकी से बाहर देखते हुए सोचने के बाद कुछ फैसला कर वो पीछे मुड़े।
" भद्रसेन ये रविंद्रनाथ और वीरेंद्रनाथ पालीवाल के मंजिले भाई है।
जो पच्चीस साल पहले लापता हुए थे "
" तो फिर ये बात आपने पहले क्यों नही बताई ?? "
" रविंद्रजीने भद्रसेनजी की बात किसी से भी कहने से मना किया था "
" क्या ??......उनसे इतनी डरने की क्या बात है " उदयने पूछा।
" बात डरने की नही है।
वो बहुत नेक दिल इंसान है। उन्होने हमारी काफी मदद की है इसकी सारी पढ़ाई का खर्चा वही उठाते है। उनसे एहसान फरामोशी करना हमारे लिए पाप है।
आपसे विनती है हमने आपको ये बताया है ये किसी से मत कहना " खिडकी से बाहर देखते हुए ही उन्होंने कहाँ ।
इससे जादा उनको कुछ मालूम होगा ऐसा तो नही लग रहा था। उदय उधर से ऊठकर उनको प्रणाम करके घर की तरफ चल पड़ा ।
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उदय घर पहुँचा तब तीन बज चुके थे। घर
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