तलाश by अभिषेक दलवी (mobi ebook reader .txt) 📖
- Author: अभिषेक दलवी
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आज सिर्फ उनकी शादी की सालगिरह ही नही थी बल्कि रणवीरसिंहने दो दिन पहले एक मुंबई मे और दूसरा लंदन मे फाइव स्टार होटल खरीदकर होटल इंडस्ट्री मे भी पैर जमाना शुरू कर दिया था। ऐसी दुगनी खुशी का माहौल आज था। रणवीर सिंह लोगों से हाथ मिलाते हुए केक काटने बंगले के पीछे वाले बगीचे मे पहुँचे। दायीं तरफ़ चल रहा आर्केस्ट्रा का मधुर संगीत सुनाई दे रहा था। बगीचे के बीचोबिच फूलों से सजाए हुए टेबल पर एक लाजवाब केक रखा हुआ था ये केक शहर के मशहूर शेफ जोसेफ डिसोझा ने बनाया हुआ था। रणवीरसिंह अपनी पत्नी रेश्मा के साथ उस केक के सामने आकर खड़े हो गए। सारे लोग उन्हे घेर कर खड़े हो थे। जैसे ही उन्होने केक काटा वैसे आर्केस्ट्रा की तरफ़ से उनको बधाई देने वाला गीत सुनाई देने लगा। लोग एक एक करके उनको बधाई देने लगे सबको शुक्रिया अदा करते करते आधा घंटा बीत गया लोग अब डिनर के लिए जाने लगे रेश्मा बाकी की औरतों के साथ पार्टी मे घुलमिल गई। रणवीरसिंह भी एक सॉफ्टड्रिंक का ग्लास उठाकर अपने दोस्तों के साथ बाते करते खड़े हो गए। रणवीरसिंह पार्टी मे भी सॉफ़्टड्रिंक ही लेते थे शराब को उन्होंने पूरी तरह से अपने आप से दुर रखा था। उनके पिताजी के बर्बादी मे उनकी शराब पीने की आदत का ही हाथ था यही कारण था की वो शराब से इतनी नफरत करते थे। इतना ही नही नशे से बिगड़े हुए समाज को सुधारने के लिए उनके चंदे से चलने वाले कई नशामुक्ति केंद्र शहर मे मौजूद थे।
उनका ध्यान गेट की तरफ़ गया। लाल बत्ती लगी हुई कुछ सफेद सरकारी गाडियां बंगले मे आती हुई नज़र आई। रिम्पी उनके पास आकर बोली " सर चीफ मिनिस्टर साहब आ गए चलिए "
वैसे रणवीरसिंह उनके स्वागत के लिए आगे बढे। वो सफेद गाड़ी बंगले मे आकर रुक गई। उसमें से खादी पहने हुए प्रभाकर देशमुख यानी चीफ मिनिस्टर साहब और उनके दामाद अजित कुलकर्णी उतरे।
" सर बहूत देर कर दी आने मे " रणवीरसिंहने उनसे हाथ मिलाते हुए कहाँ।
" अरे रणवीर तुम तो जानते ही हो काम का कितना बोझ रहता है उसमे से वक्त निकाल कर आना कितना मुश्किल है " प्रभाकर देशमुख ने कहाँ ।
" फ़िर भी आप मेरे बुलावे पर आये इसलिए बहूत शुक्रिया "
" अरे हम कैसे ना आते हमारे दामाद पिछले दो दिन से हमारे पीछे पड़े थे " उन्होंने हँसते हुए कहाँ ।
" इस खुशी के मौके पर हमारी तरफ से ये तोहफ़ा " कहकर उन्होने रणवीर के हाथों मे एक फाईल दी।
" अरे वा....मेरे पनवेल के प्रोजेक्ट को सरकार से अप्रूवल मिल गया " फाईल के अंदर रहे कागजात देखकर रणवीरने मुस्कान के साथ कहा।
" अरे जब सरकार खुद तुम्हारे साथ है तो अप्रूवल कैसे नही मिलेगा " अजितने कहा ।
" वैसे रणवीर इलेक्शन पास आ रहे है दोनो अपोजिशन पार्टियाँ साथ मिलकर इलेक्शन लड़ रही है उनके पार्टि फंड का भी तगडा इंतजाम हो चुका है। " प्रभाकर देशमुख ने कहाँ।
" डोंट वरी....देशमुख साहब रणवीर के होते हुए आपको फंड की चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है मेरी सिंडिकेट आपको ही सपोर्ट करेगी " कहकर रणवीरने फाईल रिम्पी को दी ।
" शुक्रिया "
" आइए पार्टी एन्जॉय कीजिए... रिम्पी साहब को अंदर ले जाओ "
प्रभाकर देशमुख अपने सेक्यों रिटी के साथ अंदर की तरफ़ चले गए। जैसे वो गये वैसे उनके दामाद अजित कुलकर्णी रणवीरसिंह के बाजू मे आकर खड़े हो गए ।
" रणवीर बास्टर्ड..... थोड़ा अमीर क्या बन गया दोस्त को भूल गया पार्टी का बुलावा तक नही भेजा ?? " रणवीरसिंह के सर पर एक थप्पा मारते हुए उसने पूछा ।
" अरे बुलावा मेहमानों को दिया जाता है अपने ही लोगों को बुलावा देकर उनकी बेइज्जती करना हमारी आदत नही " रणवीरसिंह भी अपने अंदाज़ मे उसे जवाब दिया।
" ऐसी मिठी मिठी बाते करके सामनेवाले को रिझाने की आदत अभी तक गई नही "
" वो वैसे भी कभी जाएगी नही और मेरा तोहफ़ा कहा है पार्टी मे भी खाली हाथ आ गया "
" अरे तोहफ़े वैगरह तो पराए को दिए जाते है। अपने लोगों को तोहफ़े देकर उनकी इज्जत उतरना हमारी आदत नही "
" मेरे ही बाते मूझपर ही पलटा रहा है "
" वैसे एक बात बता तेरी इस सेक्रेटरी का नाम क्या है ? " अजित धीमी आवाज मे पूछा ।
" उससे तूझे मतलब ? "
" अरे नही बस ऐसे ही "
" एक काम करता हूँ भाभीजी को उसका नाम बता देता हूँ वो तुम्हे बता देगी " कहते हुए रणवीरसिंहने फोन करने के लिए जेब से सेल फोन निकाला।
" अबे मरवायेगा क्या " अजितने उसके हाथ से फोन छींनते हुए कहाँ ।
" कमीने सुधर जा "
" बरखुददार सुधरने के लिए पहले बिगड़ना पड़ता है "
" मतलब तू कभी नही सुधरेंगा " मुस्कुराते हुए रणवीरसिंहने कहाँ ।
रिम्पी उनके के पास आकर बोली " सर मिस्टर मदनलाल छेड़ा आ गये है "
" ओह ससुरजी भी आ गये....चल मिलके आते है " कहते हुए रणवीरसिंह अजित और रिम्पी के साथ चलने लगे ।
सामने कूछ दूरी पर एक पुरानी मर्सिडिज आकर रुकी। उसमे से रणवीरसिंह के ससुर मदनलाल और उनकी पत्नी उतर कर आते आते दिख रहे थे। मदनलाल एक ज़माने मे शहर के जानेमाने रहीस जाने जाते थे। आज रणवीरसिंह जैसे कूछ बिजनेसमन ने उनको पीछे छोड़ दिया लेकिन आज भी उनकी कई केमिकल फेक्ट्रिज , टेक्सटाइल मिल्स
और कन्स्ट्रक्शन का बिजनेस ठीक हालात मे चल रहे थे। उनको देखकर रेश्मा झट से उन्हे मिलने आ गई। रणवीरसिंह उन्हे देखकर कहने लगे
" आज तो मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा दिन है जो खुद ससुरजी के कदम हमारी चौंकट पर आ गए नही तो हमेशा सिर्फ साँसूमॉं ही आती है " उसने मजाकिया अंदाज़ से कहाँ।
" अरे बेटे....... सोच लिया की जरा अपनी बेटी और दामाद के खुशी मे हम भी शामिल हो जाए " मदनलालने हमेशा की तरह अपनी गुरूर भरे अंदाज़ से कहाँ।
मदनलाल रणवीरसिंह के ससुर तो थे लेकिन एक ससुर को अपने दामाद प्रति जो लगाव रहता है वैसा उनमे बिल्कुल नही था। इतना ही नही रेश्मा और रणवीर की शादी उन्हे मंजूर नही थी। मदनलाल मर्जी के खिलाफ इन दोनों शादी हुई थी उन दोनो शादी के बाद भी मदनलाल की नफरत कम नही हुई। उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी का बर्ताव इससे बिल्कुल अलग था वो बहुत ही सरल और दयालु स्वभाव की थी। अपनी बेटी की पसंद उन्होने खुशी खुशी मान ली।
" आप लोग इधरही बाते करते रहोगे या घर में भी आओगे ममी पापा आप आइए पहले अंदर " रेश्मा उन्हे अंदर ले जाने लगी ।
" अरे नही बेटी मूझे दामादजी से अकेले मे कूछ बाते करणी है तुम दोनो जाओ " मदनलालने कहाँ।
" ठीक है पापा " कहकर रेश्मा अपनी माँ के साथ अंदर जाने लगी। रणवीरसिंह के चेहरे पर हल्की हँसी आ गई। वो अपने ससुर को अच्छी तरह से पहचानता था। मदनलाल की मतलबी नियत से वो अच्छी तरह से वाकिफ था। मदनलाल यहाँ उसे बधाई देने नही बल्कि अपने किसी काम की वजह से आए है इस बात का अंदाजा उसने पहले ही लगा लिया था ।
" मेरा शक सही निकला आप यहाँ अपना कोई फायदा देखकर ही आए है " रणवीरसिंह होंठो पर मुस्कान लाकर तीखा सवाल किया।
" मै जो ऑफर लेकर तुम्हारे पास आया हूँ उसमे फायदा दोनो का है "
" आज इतने खुशी के मौके पर भी आप धंदे की बात लेकर आ गए " रणवीरसिंहने नाराजगी के स्वर मे पूछा।
" क्या करूँ बेटे हमारे रगों रगों से भी खून से जादा धंदा बहता है " मदनलाल वही गुरूर भरे अंदाज़ मे कह रहे थे।
" चलिए जिस काम लिए हम आप इतना कीमती वक्त निकाल कर आए है वो कर देते है " कहकर रणवीरसिंह उनको लेकर अपने बंगले मे रही कॉन्फरेंस रुम मे लेकर आए ।
मदनलाल जी के साथ उनका पीए रणवीरसिंह के साथ रिम्पी और अजित आ गए। कॉन्फरेंस रूम के बीचो बीच मार्बल का मेज मौजूद था। एक तरफ़ तरफ के कूर्सियों पर माणिकचंदजी बैठ गए और दूसरी तरफ़ रणवीरसिंह और अजित बैठ गये। मदनलाल का पीए और रीम्पी अपने अपने बॉस के बगल मे खड़े हुए।
" वक्त का कमाल देख रहे हो मिश्रा एक ज़माने मे जो रास्ते की ठोकरे खा रहा था आज महलो मे रह रहा है " माणिकचंदने रणवीरसिंह को ताना मारते हुए अपने पीए से कहाँ ।
" अजित वक्त का कमाल सचमुच लाजवाब है। एक ज़माने मे जिसने मूझे ठुकरा दिया था आज खुद अपनी ऑफर लेकर मेरे दरवाजे पर आया है " रणवीरसिंहने भीअजित से कहते हुए ताने का जवाब दिया ।
" काम की बात करे " मदनलाल छेड़ाने बात घुमाते हुए पूछा ।
" जरूर " रणवीरसिंहने जवाब दिया ।
मदनलाल के पीएने अपनी बॅग से लॅपटॉप निकाला और उसपर एक फाईल ओपन करके रणवीरसिंह के सामने रखा। वो कुछ जमीन के फोटोग्राफ्स और कागजात की सॉफ्टकॉपीज थी ।
" ये क्या है ?? " रणवीरसिंहने पूछा ।
" ये हमारा बोरीवली का बीस एकर का प्लॉट है और इससे लगकर ही तुम्हारा चालीस एकर का प्लॉट है जो तुमने हाल ही मे खरीदा है "
" तो ?? "
" अगर तुम्हारा ये प्लॉट मेरे प्लॉट से जुड़ जाए तो इस पूरे इलाके मे हम एक बिजनेस पार्क , एक शॉपिंग मॉल और एक रेसिडेन्शियल कॉम्प्लेक्स आराम से बना सकते है। अगर तुम्हे ये डील मंजूर है तो इस सारे प्रोजेक्ट का कांट्रेक्ट मै तुम्हारी कन्स्ट्रक्शन कंपनी को देने के लिए मै तयार हूँ " मदनलाल कुर्सी पर रेलते हुए आराम से बोल रहे थे।
" रिम्पी आज सूरज पश्चिम की तरफ निकला है क्या जरा पता करना .........
जो इंसान पहले से मेरा जानीदुश्मन रहा है आज वही पार्टनरशिप की ऑफर लेकर मेरे पास आया है। दाल मे कुछ काला नही लगता अजित ?? " अजित की तरफ देखते हुए रणवीरसिंहने कहाँ।
" असल मे दाल मे कुछ काला नही पूरी दाल ही काली है रणवीर " अजितने कहाँ ।
" मतलब ?? "
" बताता हूँ " अजित बताने लगा " मराठी मे एक कहावत है ' सुंभ जळला तरी पीळ काही जात नाही ' इतने घाटे मे होने के बावजूद भी इनकी अकड़ नही गई। ये जिस प्लॉट की बात कर रहे है दरअसल वो कब्जा की हुई जमीन है और जिन लोगों से इन्होंने वो ज़मीन कब्जा करके ली है वो अब इनके खिलाफ आवाज उठाने लगे है। ऐसी जमीन ये बेचना भी चाहे तो कोई खरीदेगा नही और अगर समझो इन्होंने समझा बूझाकर पैसे खिलाकर लोगों को शांत करवा भी दिया तो उधर काम करने के लिए जो इनकी खुद की कन्स्ट्रक्शन कंपनी जो है वो भी घाटे मे चल रही है और तो और मार्केट मे इन्हे कोई फायनान्स करने के लिए भी तैयार नही है इसीलिए अब तुम्हारे पास ऐसी ऑफर लेकर आए है "
" मूझे आपके इस ऑफर मे कोई दिलचस्पी नही है " झट से कहकर रणवीरसिंहने लॅपटॉप मदनलाल छेडा की तरफ सरका दिया ।
सोच लो वैसे ये बात अगर रेश्मा सुनेगी तो...." उन्होने धमकी देते हुए कहाँ ।
" आपने सोच भी कैसे लिया की अपने बीवी के कहने पर मै अपना फैसले बदल दूँगा " रणवीरसिंहने मुस्कुराते हुए कहाँ।
" सर सर सुनिए .... मूझे लगता है इनके ऑफर से हमे फायदा होगा " उनकी बहस को रोकते हुए रिम्पी ने कहाँ।
" हाँ रणवीर ये ठीक कह रही है ।
इनका प्लॉट मेन रोड से जुड़कर है इसलिए उसकी मार्केट व्हॅलूभी तुम्हारे प्लॉट से जादा है। अगर तुम्हारा प्लॉट इनके प्लॉट से जुड़ता है और तूम वहाँ कुछ डेवलप मेंट प्लँन लाते हो तो तूम अपनी जगह का एंट्रेन्स इनके प्लॉट से बनवा सकते हो। इसमें तूम्हारी प्लॉट की कीमत भी बढ़ जाएगी। तुम्हे बहुत मुनाफा होगा
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